- सुप्रिया सत्यार्थी
जीवन में हम कई कठिन दौर से गुजरते हैं, लेकिन किसी प्रियजन की मृत्यु वह आघात है जिसे शब्दों में बांधना असंभव है। जब कोई अपना अचानक चला जाता है, तो यह सच मानने में बरसों लग जाते हैं। मैं यही सोचती रही कि शायद यह सब सपना है। एक दिन सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा।
मेरी माँ... वह सिर्फ मेरी माँ नहीं, मेरी सबसे बड़ी ताकत, मेरी सबसे प्यारी दोस्त और मेरे जीवन का आधार थीं। उनका हर काम, उनकी हर बात मेरे जीवन का हिस्सा बन चुकी थी। उनकी सादगी और ममता ऐसी थी, जो दूसरों के लिए मिसाल हो। माँ कभी किसी से ऊँची आवाज़ में बात नहीं करती थीं, और मुझे तो उन्होंने कभी डांटा भी नहीं। उनकी मुस्कान जैसे हर चिंता का हल थी।
माँ की सादगी का एक अलग ही रंग था। फेयरनेस क्रीम के नाम पर वह बस बोरोलीन लगातीं। मैं अक्सर उनसे कहती, "माँ, आप इतनी सादगी से क्यों रहती हैं? थोड़ा बन-ठन लिया करो।" वह मुस्कुरा देतीं और कहतीं, "तुम्हारे लिए मैं जैसी हूँ, उतनी ही ठीक हूँ।" लेकिन मैं कहाँ मानने वाली थी। मैं कभी उनके बाल काट देती, उन्हें परेशान करती थी । माँ हमेशा मुझे देख कर मुस्कुरातीं, मानो कह रही हों कि मैं जैसी भी हूँ, तुम्हारे लिए हमेशा खास रहूँगी।
जब मैं स्कूल से लौटती, तो मेरी पहली चिंता यही होती कि खाने में क्या बना है। बैग फेंककर सीधा माँ से पूछती, "आज क्या बना है?" माँ मुझे देख कर मुस्कुरातीं और कहतीं, "जो तुम्हें पसंद है।" वह मुस्कान मेरे लिए दुनिया की सबसे बड़ी सुरक्षा थी। माँ की हर चीज पर मैं अपना अधिकार समझती थी।
माँ के पास बैठने का भी मेरा एक तरीका था। मैं हमेशा उनके सहारे बैठती और माँ प्यार से कहतीं, "अपने भार से बैठा करो, थक जाऊंगी।" लेकिन मैं कहती, "नहीं माँ, ऐसे ही रहूंगी।" माँ की गोद में सिर रखकर बालों की मालिश करवाना मेरी सबसे बड़ी खुशी थी।
लेकिन यह खुशियां कुछ सालों की ही थीं। माँ की अचानक से मृत्यु हो गयी । सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि मुझे समझने का वक्त ही नहीं मिला। मेरे सामने माँ हम सबको छोड़ कर चली गईं।
उनके जाने के बाद, मेरा जीवन जैसे रुक गया। मैं महीनों तक रोती रही। रो-रोकर मेरी आँखों के नीचे खून जम गया और आँखों में घाव हो गया। मैं हर समय खुद को अकेला महसूस करती। माँ का प्यार और उनका साया मेरे जीवन से जैसे छिन गया था।
मैंने उनकी अनुपस्थिति में हर जगह उनका प्यार ढूंढने की कोशिश की। किसी से दुलार की उम्मीद की, किसी से सहारा मांगा। लेकिन माँ की जगह कोई नहीं ले सका। उनकी अनुपस्थिति ने मुझे सिखा दिया कि उनका प्यार अनमोल था, और उनकी जगह कोई नहीं ले सकता।
उनके जाने के बाद मैंने खुद को बदलते देखा। मैं किसी से गुस्से में कोई बात नहीं कहती। कोई फरमाइश नहीं करती। किसी पर अपना अधिकार जताने की हिम्मत नहीं कर पाई। मुझे लगता था कि अब दुनिया में किसी पर अधिकार जताने का मेरा समय बीत चुका है।
कई बार मैं बालकनी में खड़ी होकर औरतों के चेहरों में माँ को ढूंढती। अगर कोई माँ की तरह दिखती, तो मैं उसे घंटों निहारती रहती। रात को सोते वक्त आँखें बंद करके महसूस करती कि माँ मेरे पास हैं, मुझे गले लगाकर कह रही हैं कि सब ठीक हो जाएगा। यह अहसास न जाने कितने महीनों और सालों तक मेरे साथ रहा।
माँ को गए 14 साल हो गए, लेकिन शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो जब मैंने उन्हें याद न किया हो। माँ की यादें, उनकी बातें, उनकी आवाज, उनकी मुस्कान... सब कुछ मेरे साथ है।
हर साल नया साल आता है, और मैं खुद से कहती हूँ, 'एक और साल बीत गया माँ, लेकिन आप मुझसे दूर नहीं हुईं।' उनकी यादें मेरी ताकत हैं। जब भी कोई मुश्किल आती है, माँ की बातें मुझे संबल देती हैं। वह कहती थीं, 'कोई भी कठिनाई तुम्हारा हौसला नहीं तोड़ सकती। बस अपने आप पर विश्वास रखना।'
आज भी जब मैं अकेली होती हूँ, तो माँ की गोद की गर्माहट महसूस करती हूँ। उनकी तस्वीर मेरे पास है, लेकिन मुझे लगता है कि माँ कहीं आसपास हैं। वह मेरी हर खुशी, हर दुख में शामिल हैं।
माँ के जाने ने मुझे कमजोर नहीं किया। उनकी यादें मुझे हर दिन जीने का नया हौसला देती हैं। माँ भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी सादगी, उनकी ममता और उनका प्यार मेरे जीवन का हिस्सा बनकर हमेशा मेरे साथ हैं।
माँ की अनुपस्थिति मेरी सबसे बड़ी कमी है, लेकिन उनकी यादें मेरी सबसे बड़ी ताकत। शायद यही जीवन का सच है। प्रियजन चले जाते हैं, लेकिन उनकी स्मृतियाँ हमेशा हमारे साथ रहती हैं। मैं आज भी उन्हीं पलों को जीती हूँ, और माँ की मौजूदगी को हर पल महसूस करती हूँ।
प्रयागराज , उत्तरप्रदेश